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सातवाँ अध्याय : ज्ञानविज्ञानयोग

  • Sanjay Bhatia
  • Jun 24, 2017
  • 3 min read

श्रीभगवानुवाच ---

सुन अर्जुन ! अमाँ मुझ में पाये हुए,

मेरी ज़ात में लौ लगाये हुए।

तुझे योग की मश्क का ध्यान हो,

तो सुन किस तरह मेरी पहचान हो। (१)

मैं करता हूँ वो राज़-ए कामिल बयां,

करे इल्म-ओ उरफ़ॉ जो तुझ पर अयाँ।

यह पहचान कर सब को पहचान ले,

जो है जानने का वो सब जान ले। (२)

हज़ारों में होगा कोई ख़ाल-ख़ाल,

हो जिस को फ़िकर-ए हसूल-ए कमाल।

हो इन बा-कमालों में कोई बशर,

जो मेरी हक़ीक़त से पाये ख़बर। (३)

यह मिट्टी, यह पानी, यह आग और हवा,

यह आकाश दुनिया पे छाया हुआ।

यह दानिश, यह दिल,यह ख़्याल - ए खुदी,

है इन आठ हिस्सों फ़ितरत मेरी। (४)

यह फ़ितरत तो अदना है सुन ओ कवी,

मगर मेरी फ़ितरत है इक और भी।

वो फ़ितरत है आला बने जो हैयात,

इसी से तो कायम है कुल कायनात। (५)

इन्हीं फ़ितरतों से है सब हस्त-ओ बूद,

इन्हीं के शिकम से हुए सब वजूद।

सो मुझ से है आग़ाज-ए आलम तमाम,

मेरी ज़ात में सब का हो एख़ताम। (६)

सुन अर्जुन नहीं कुछ भी मेरे सिवा,

न है मुझ से बढ़ कर कोई दूसरा।

पिरोया है सब कुछ मेरे तार में,

कि हीरे हों जैसे किसी हार में। (७)

मैं पानी में रस,चाँद सूरज में नूर,

मैं हूँ 'ओ३म्' वेदों में जिस का ज़ऊर।

सदा मुझ को आकाश में कर ख़्याल,

मैं मरदों में मरदी हूँ कुन्ती के लाल। (८)

मैं मिट्टी के अन्दर हूँ खुशबू - ए पाक,

मैं हूँ आग में शोला - ए ताबनाक।

मैं जान-ए जहाँ जानदारों में हूँ,

रियाज़त इबादत गुज़ारो में हूँ। (९)

सुन अर्जुन मैं हूँ बीज हर हस्त का,

मैं वो बीज हूँ जो न होगा फ़ना।

मैं दानिश हूँ उन की जो हैं होशियार,

मैं ताबिश हूँ उन की जो हैं ताबदार। (१०)

मैं हूँ क़ुव्वत - ओ ज़ोर मरद-ए ज़री,

मगर हूँ हवा-ओ हवस से बरी।

सुन अर्जुन मैं ख़्वाहिश हूँ इन्सान की,

जो दुश्मन न हो धर्म ईमान की। (११)

मुझी से है फ़ितरत सतोगुण कही,

मुझी से रजोगुण तमोगुण कही।

मगर मैं बरी इन से हूँ बिल-यकीं ,

ये मुझ से हैं लेकिन मैं इन से नहीं। (१२)

गुणों से हुए वस्फ़ तीनों अयाँ,

हुए जिन से गुमराह एहल-ए जहाँ।

समझते नहीं लोग मेरा कमाल,

कि बाला हूँ मैं इन से और बे-ज़वाल। (१३)

गुणों से जो माया हुई आ-शिकार,

यह माया हैं या फ़ितरत-ए किर्दगार।

कहाँ इस से इन्सां कभी पार हो,

फ़कत पार मेरे परस्तार हों। (१४)

जो गुमराह बद-कुन हैं और पुर-ख़ता,

करे ज्ञान-गुण उन के माया फ़ना।

पसन्द उन को सीरत है शैतान की,

मेरे पास आते नहीं वो कभी। (१५)

सुन अर्जुन हैं मेरे परस्तार चार,

तलबगार मेरे निको-कार चार।

दुःखी शक्स या इल्म की जिस को धुन,

तलब ज़र की या जिस में हो ज्ञान गन। (१६)

जो ज्ञानी है चारों में सरदार है,

मुझी में वो यकदिल है सरशार है।

करे ज़ात-ए यकता की भक्ति सदा,

मैं प्यारा हूँ उस का वो प्यारा मेरा। (१७)

परस्तार हर एक गो नेक है,

जो ज्ञानी है मुझ से मगर एक है।

वो यकदिल है और उस से यकदिल हूँ मैं,

वो कायम है और उस की मन्ज़िल हूँ मैं। (१८)

जनम पर जनम ले के ज्ञानी ज़रूर,

पहुँच जाये आखिर को मेरे हज़ूर।

वो जाने कि सब कुछ है जान-ए जहाँ,

महा-आत्मा ऐसा होगा कहाँ। (१९)

हवा-ओ हवस से जो मजबूर हैं,

हुए ज्ञान से उन के दिल दूर हैं।

करें दूसरे देवताओ से प्रीत,

निकाले तबीयत से पूजा की रीत। (२०)

किसी रूप का भी परस्तार हो,

यकीं से इबादत में सरशार हो।

परस्तार ऐसा भटकता नहीं,

मैं करता हूँ मज़बूत उस का यकीं। (२१)

परस्तार वो ज़ौक-ए यकीं से करे,

जिसे देवता मान ले मान ले।

वो पाता है ज़ोर-ए यकीं से मुराद,

जो दर-असल होती है मेरी ही दाद। (२२)

जो नादाँ नहीं ज्ञान में होशियार,

परस्तार से फल पाये नापायदार।

जो देवों को पूजें वो देवों को पायें,

परस्तार मेरे, मेरे पास आयें। (२३)

मैं चश्म - ए जहाँ से निहाँ हूँ निहाँ,

मगर मुझ को नादाँ समझ ले अयाँ।

वो मुझ को नहीं जानते बे-मिसाल,

मेरी ज़ात आली है और बे-ज़वाल। (२४)

जो मैं योग माया से मस्तूर हूँ,

जहाँ की नज़र से बहुत दूर हूँ।

यह मूरख ज़माना नहीं जानता,

कि मेरा जनम है न मुझ को फ़ना। (२५)

जो गुज़री हुई हस्तियाँ हैं सभी,

जो मौजूद हैं अब कि होंगी अभी।

सुन अर्जुन मैं इन सब हूँ बा-खबर,

किसी को नहीं इल्म मेरा मगर। (२६)

ये धोखे की टटटी हैं इसदाद सब,

ये हैं शोक-ओ नफ़रत की औलाद सब।

इन्हीं से तो अर्जुन यह ख़लकत तमाम,

परा-गन्दा रहती है यूँ सुबह शाम। (२७)

वो इन्सॉ भले जिन के आमाल हैं,

गुनाहों से जो फ़ाऱग - उलबाल हैं।

न अज़दाद उन को न धोखा न ग़म,

मेरी बन्दग़ी में हैं साबत कदम। (२८)

मुझी को समझ कर जो उम्मीद गाह,

बुढ़ापे से और मौत से लें पनाह।

उन्हें ब्रह्म की खूब पहचान है,

फिर अध्यात्म और कर्म का ज्ञान है। (२९)

अधिभूत जो लोग मानें मुझे,

अधिदेव अधियज्ञ भी जाने मुझे।

वो यकदिल हैं, चित्त उन के हमवार हैं,

दम-ए नज़ा भी मुझ से सरशार हैं। (३०)

श्रीकृष्णार्जुनसंवादे ज्ञानविज्ञानयोगों नाम सप्तमोअध्यायः।

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