top of page
Search

दसवाँ अध्याय :विभूतियोग

  • Sanjay Bhatia
  • Jun 27, 2017
  • 4 min read

श्रीभगवानुवाच ---

सुखन-संज भगवान फिर यूँ हुए,

कि सुन ऐ कवि दस्त प्यारे मेरे।

यह आला सुखन फिर बताता हूँ मैं,

भलाई का रस्ता दिखाता हूँ मैं। (१)

हुए देवता महर्षि जिस कदर,

मेरी इब्तदा से सब बे-खबर।

मुझी से है सब देवताओं की बूद,

मिला मुझ से हर महर्षि को वजूद। (२)

समझता है मुझ को जो बे-इब्तदा,

जन्म से बरी शाह-ए अर्ज़-ओ समा।

फ़रेब-ए नज़र से वही पाक है,

गुनाहों से आज़ाद-ओ बेबाक है। (३)

मुझी से है सुख दुःख दिलेरी हिरास,

ख़िरद इल्म कल्ब-ए हक़ीक़त शनास।

सदाकत सकूँ जब्त अफ़ू-ओ करम,

मुझी से वजूद और मुझी में अदम। (४)

अहिंसा किनायत दिल-ए पुर-सकूँ,

रियाज-ओ सखा नाम नेक-ओ जबूं।

गरज जानदारों में जो हैं सफात,

है उन सब का मम्बा मेरी पाकजात। (५)

वो सातों मुअज्ज़ज़ ऋषि नामदार,

मनु और वो चारों कदीमी कुमार।

जहाँ वाले सब जिन से पैदा हुए,

वो मेरे ही मन से हवीदा हुए। (६)

जो क़ुव्वत मेरे योग की जान ले,

हक़ीक़त मज़ाहर की पहचान ले।

वो कायम रहे योग पर बिलयकी,

तवाज़न है इस तज़ल्ज़ल नहीं। (७)

मेरी ज़ात है मम्बा - ए कायनात,

मुझी से हुआ अर्तका-ए हय्यात।

यकीं इस पे रखते हैं जो ऐहल-ए होश,

करें मेरी भक्ति ब-जोश-ओ ख़रोश। (८)

मुझी में हैं मन को जमाये हुए,

हैं प्राण अपने मुझ में लगाये हुए।

वो करते हैं आपस में पुरनूर दिल,

मेरे जिक्र से शाद-ओ मसरूर दिल। (९)

वो रहते हैं यक-दिल मेरे जौक से,

वो करते हैं पूजा मेरी शौक से।

मैं देता हूँ उन को वो दानिश का योग,

कि हो जाते हैं मुझ से वासिल वो लोग। (१०)

जो रहम उन की हालत पे खाता हूँ मैं,

तो घर उन के दिल में बनाता हूँ मैं।

दिखाता हूँ उन को हिदायत का नूर,

अन्धेरा जहालत का हो जिस से दूर। (११)

अर्जुन उवाच ---

तू आली खुदा तेरा आली मुकाम,

वो हस्ती है तू जिस की अज़मत मुदाम।

तू माबूद-ए अव्वल, तेरी पाक ज़ात,

जन्म से बरी मालक-ए कायनात। (१२)

उसी तरह लें आप के पाक नाम,

असित, व्यास, देवल ऋषि भी तमाम।

यही देव नारद बताये सफ़ात,

यही आप अपनी सुनाये सफ़ात। (१३)

गरज़ आप ने जो बताया मुझे,

यकीं केशव भगवान् आया मुझे।

न समझा कोई आप की शान को,

कोई देवता हो कि शैतान हो। (१४)

जगत के पति ख़ालिक-ओ किबरिया,

सभी देवताओं के हो देवता।

पुरषोत्तम ऊंची है बात आप की.

अगर बात जाने तो ज़ात आप की। (१५)

करें आप मुझ पर मुकम्मल अयाँ,

जलाल-ए मूक मुक६स का वाजय निशाँ।

जहां फ़ैज़ से जिस के मामूर है,

जमीन-ओ जमा जिस से पुरनूर है। (१६)

बता दीजिये मेरे योगी जरा,

मिले ध्यान से कैसे ज्ञान आप का।

करुँ किन मुजाहर में जम कर ख़याल,

कि खुल जाये मुझ पर हक़ीक़त का हाल ?। (१७)

जरा योग अपना बयाँ कीजिये,

जलाल अपना भगवान् अयाँ कीजिये।

कि बातें वो अमृत-सी हैं आप की,

तबीयत नहीं सेर होती कभी। (१८)

श्रीभगवानुवाच--

हुए सुन के भगवान् यूं लब-कुशा,

हैं अर्जुन मेरे वस्फ़ लाइन्तहा।

जलाल अपना कुछ-कुछ बताता हूँ मैं,

सफ़ात-ए नुमायां दिखाता हूँ मैं। (१९)

सुन अर्जुन हूँ मैं आत्मा बिलयकी,

जो है जानदारों के दिल में मकीं।

मैं हूँ मिस्ल-ए जाँ ऐहल-ए जाँ में निहाँ,

मैं अव्वल मैं आख़िर मैं हूँ दरमियाँ। (२०)

हैं आदित्यों में मेरा विष्णु ख़िताब,

मैं अश्या-ए पुरनूर में आफ़ताब।

मरीचि मरुतों के अन्दर हूँ मैं,

मनाज़ल में तारों का चन्दर हूँ मैं। (२१)

समझ मुझ को वेदों में तू वेद साम,

मेरा देवताओं में वासु है नाम।

हसो में हूँ मन मुझ को पहचान तू,

तो जाँ ऐहल-ए जाँ की मुझे जान तू। (२२)

मैं रुद्रों के अन्दर हूँ शंकर दिलेर,

जो हैं राक्षस यक्ष उन में कुबेर।

हूँ वसुओं में अग्नि मुझे तू समझ,

सब ऊंचे पहाड़ो में मेरु समझ। (२३)

जो पुरोहित हैं उन में बृहस्पति हूँ मैं,

सुन अर्जुन कि सरकरदा पुरोहित हूँ मैं।

स्कन्द ऐहल-ए लश्कर के अन्दर कहो,

तो झीलों के अन्दर समुन्दर कहो। (२४)

भृगु यानी ऋषियों का सरदार हूँ,

सुख़न में सुख़न हर्फ़-ए ओंकार हूँ।

यज्ञों में जप यज्ञ निराला हूँ मैं,

जो मुहकम हैं उन में हिमाला हूँ मैं। (२५)

दरख़तों में पीपल का हूँ मैं दरखत,

मैं ऋषियों में नारद हूँ ऐ नेकबख़्त।

हूँ गन्धर्व लोगों में चित्ररथ मैं,

कपिल हूँ मुनि उन में जो सिद्ध हैं। (२६)

मैं घोड़ों में इन्द्र का हूँ अश्व नर,

जो अमृत के मन्थन से आया नज़र।

मैं फ़ीलो के अन्दर हूँ इन्दर का फ़ील,

जो इन्सां हैं उन में शहब-ए अदइल। (२७)

मैं आलात-ए जंगी में बर्क-ए तपाँ,

मैं गाइयों में हूँ कामधुक बेगुमाँ।

शहन्शाह नागों का मैं वासुकी,

हूँ कन्दर्प जिस से हों पैदा सभी। (२८)

मैं नागों में हूँ शेष लाइन्तहा,

मैं जलवासियों में वरुण देवता।

मैं पितरों में हूँ अर्यमा जी-हशम,

मैं दुनिया के फ़रमानरवाओ में यम। (२९)

मैं हूँ दैत्यों में प्रह्लाद सुन,

मैं वक़्त उन में रक्खे जो गिनती का गुन।

मैं शेर-ए बबर सब दरिन्दो में हूँ,

तो विष्णु का शाहीं परिन्दों में हूँ। (३०)

मैं सरसर हूँ उन में जो हैं तेज़ गाम,

मैं हूँ तेग़-ओ शमशीर वालों में राम।

मुझे मछलियों में मगर जान तू,

दरियाओ में गंगा मुझे मान तू। (३१)

मैं आगाज़-ओ अन्जाम ऐहल-ए जहाँ,

जो कुछ दरमियाँ है तो मैं दरमियाँ।

मैं इल्मों में हूँ इल्म जान ऐ अकील,

दलीलो में अर्जुन मैं हक़ की दलील। (३२)

अलफ़ हूँ सुखन जो करे इब्तदा,

मैं हूँ अत्फ़ लफ़ज़ों को दे जो मिला।

मैं हूँ वक्त जिस को फ़ना ही नहीं,

मुआफ़ज़ हूँ वो जिस का रुख़ हर कहीं। (३३)

कज़ा हूँ जो करती हैं सब को फ़ना,

नई ज़िन्दगी की हूँ मैं इब्तदा।

मैं हूँ संन्फ -ए नाज़क में इकबाल-ओ नाम,

सुखन हाफ़ज़ा अफ़ू अक्ल-ओ कयाम। (३४)

मैं सामों में बृहतसाम ऐ होशमन्द,

तो छन्दों में गायत्री का हूँ मैं छन्द।

महीनों में मुझे अगहन कर शुमार,

बहारों में फूलो के हूँ मैं बहार। (३५)

जुआ हूँ मैं उन में जो चलते हैं चाल,

जलाल उन का जिन में हैं जाह-ओ जलाल।

इरादा भी मैं फता-ओ नुसरत भी मैं,

जो सादक हैं उन की सदकात भी मैं। (३६)

मैं वृष्णियों में हूँ वासुदेव ऐ मशीर,

कबीले में पाण्डु के अर्जुन अमीर।

मैं हूँ व्यास उन में हैं जितने मुनि,

जो शायर हैं उन में हूँ उशना कवि। (३७)

जो हाकिम हैं मैं उन की तहज़ीर हूँ,

जो फ़ातिह हैं उन की तदबीर हूँ।

मैं राज़ो में हूँ खाम्शी परदा-पोश,

मैं हूँ ज्ञान उन का जो हैं इल्म-कोश। (३८)

करुँ खल्क-ए आलम की तरदीज़ मैं,

हूँ अर्जुन हर इक चीज़ का बीज मैं।

है साकन कोई या कि सैय्यर है,

मगर मुझ सी बाहर न ज़िनहार है। (३९)

परन्तप यहाँ ग़ौर कर ले ज़रा,

मेरे पाक जलवे हैं लाइन्तहा।

जो थोड़ा-सा तुझ से बयाँ कर दिया,

नमूना-सा गोया अयाँ कर दिया। (४०)

नज़र आये कुव्वत कहीं या जलाल,

शकोह-ओ तज़म्मल कि हुसन-ओ जमाल।

समझ ले कि इस में हैं जलवा फ़गन,

मेरे बीकराँ नूर की इक किरन। (४१)

न तफ़सील में जा के उलझन बढ़ा,

कि कसरत से अर्जुन तुझे काम क्या।

मेरा एक शम्मा हुआ है अयाँ,

इसी से है मैमूर सारा जहाँ। (४२)

श्रीकृष्णार्जुनसंवादे विभूतियोगो नाम दशमोध्याय

Comments


shrimadhbhagwatgeeta

Follow

Contact

9215846999, 8708529941

Address

Jaggi Colony,Ambala, Haryana, India

©2017 BY SHRIMADHBHAGWATGEETA. PROUDLY CREATED WITH WIX.COM

bottom of page