नवाँ अध्याय : राजविद्याराजगुह्ययोग
- Sanjay Bhatia
- Jun 26, 2017
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श्रीभगवानुवाच --
तू अर्जुन नहीं ऐब-जू नुक्तची,
कर अब मुझ से राज-ए ख़फ़ी दिल नशीं।
मिलेगा यहीं इल्म-ओ उरफ़ॉ का नूर,
इसे जान जाये तो हों पाप दूर। (१)
यह इल्म-ए शही है यह राज़ - ए शही,
करे पाक हर शै से बढ़ कर यही।
अयाँ खुद-बखुद हो कि आसाँ है यह,
फ़ना से बरी ऐन ईमाँ है यह। (२)
जो इस धर्म पर दिल लगाते नहीं,
वो अर्जुन कभी मुझ को पाते नहीं।
न वासल हों मुझ से वो मुझ तक न आयें,
जहान-ए फ़ना की तरफ लौट जायें। (३)
ख़फ़ी से ख़फ़ी है मेरी हस्त-ओ बूद,
मगर है मुझी से जहाँ की नमूद।
मुझी में है मखलूक सारी मकीं,
मगर मैं मकीं खुद किसी में नहीं। (४)
न लोगों में हूँ मैं न मुझ में हैं लोग,
जरा देखना यह मेरा राजयोग।
मेरी आत्मा बाहिस-ए खास-ओ आम,
नहीं मेरा लेकिन किसी में कयाम । (५)
हवा गो चले जोर से सर-बसर,
इधर से उधर या उधर से इधर।
वो आकाश से जाये बाहर कहाँ,
समझ लो यूहीं मेरे अन्दर जहां। (६)
जब इक दौर हो खत्म कुन्ती के लाल,
तो हो मेरी माया में सब का वसाल।
नये दौर की हो जो फिर से नमूद,
करुँ मैं ही पैदा सब ऐहल-ए वजूद। (७)
उसी अपनी माया से लेता हूँ काम,
मैं करता हूँ जानदार पैदा तमाम।
चलें जौक-दर जौक सब बार-बार,
कि माया के हाथों हैं बे-इख्त्यार। (८)
सुन ऐ अर्जुन ऐ साहिब-ए सीम-ओ जर,
नहीं ऐसे कर्मों का मुझ पर असर।
कि रहता हूँ मैं बे-ग़रज सर-फ़राज़,
इन अफ्फ़ाल-ओ आमाल से बे-नियाज। (९)
मैं नाजर हूँ इस का यह करती है काम,
हों माया से सय्यार-ओ साबित तमाम।
समझ ले इसी तरह कुन्ती के लाल ,
है चक्कर ही चक्कर में दुनिया का हाल। (१०)
जब आता हूँ इन्सां का पहने लिबास,
नहीं करते परवाह मेरी न-शनास।
मेरी शान-ए आली नहीं जानते,
शहन्शाह मुझ को नहीं मानते। (११)
अबस हैं उमीदे अबस हैं अमल,
अबस इल्म उन का समझ में खलल।
तबीयत में धोखा भी वहशत भी है,
भरी शतीनत भी खबासत भी है। (१२)
वो इन्सां जो ख़िसलत में हैं देवता,
जो हैं नेक फ़ितरत महा-आत्मा।
करें कल्ब यक्सू से पूजा मेरी,
मैं हूँ ला-फ़ना मम्बा-ए जिन्दगी। (१३)
हमेशा वो गुण मेरे गाते रहें,
वो ऐहद अपना जी से निभाते रहें।
इबादत करें मेहनत और शौक से,
करें मुझ को सजदे दिली ज़ौक से। (१४)
कई रूप देखे मेरे बे-शुमार,
वो हों ज्ञान यज्ञ से इबादत गुजार।
हो वाहदत कि कसरत हर आहंग में,
मुझे पूजते हैं वो हर रंग में। (१५)
तू यज्ञ और पूजा मुझी को समझ,
श्राद्धों का गल्ला मुझी को समझ।
मैं बूटी हूँ, मंत्र हूँ, अग्नि हूँ, घी,
मैं यज्ञ भी हूँ और उन के आमाल भी। (१६)
मैं सारे जहां का हूँ माता पिता,
मैं दादा हूँ सब का, मैं हूँ आसरा।
सजावार-ए उरफ़ॉ हूँ, पाकीजाह भेद,
मैं हूँ ओ३म, मैं ऋक यजुर साम वेद। (१७)
मैं आका मैं वाली सज्जन मैं गवाह,
मैं मन्ज़िल मैं मस्कन मैं जाय पनाह।
मैं आगाज-ओ अन्जाम-ओ गन्ज-ओ मुकाम,
मैं वो बीज हूँ जो रहेगा मुदाम। (१८)
मुझी से तपश भी हो कुन्ती के लाल,
कभी खुश्क साली कभी बर-शगाल।
फना-ओ बका का मुझी से नमूद,
मुझी से है सत और असत का वजूद। (१९)
जिन्हें तीनों वेदों में है दस्तरस,
वो जन्नत के तालिब पियें सोमरस।
परस्तार मेरे ये मासूम लोग,
मिले उन को जन्नत में देवों का भोग। (२०)
फिजाओ में जन्नत की खुशियाँ मनाये,
मगर होके खाली यहीं लौट आये।
मुराद अपनी वेदों से पाते रहें,
वो आते रहें और जाते रहें। (२१)
जो करते हैं खालिस इबादत मेरी,
जो यक-दिल हों जी में न रखें दुई।
करुँ हाजते उन की पूरी तमाम,
वो मेरी हिफाजत में हो सुबह शाम। (२२)
सनम दूसरे जो मनाते रहें,
दिल उन पर यकीं से लगाते रहें।
करें वो न गो हसब-ए दस्तूर काम,
परस्तार वो भी हैं मेरे तमाम। (२३)
कि यज्ञ जितने करते हैं दुनिया में लोग,
मैं हूँ उन का मालिक मैं खाता हूँ भोग।
न जानें वो मेरी हक़ीक़त का हाल,
इसी वास्ते पाये आख़िर ज़वाल। (२४)
मनायें जो पितरों को पितरों तक आयें,
जो भूतों को पूजें वो भूतों को पायें।
सनम के पुजारी सनम मिलें,
हमारे परस्तार हम से मिलें। (२५)
मेरी नज़र देता है जो शौक से,
दिल-ए पाक से चाह से ज़ौक से।
मैं नज़र उस की करता हूँ बेशक कबूल,
वो फल हो कि पानी कि पत्ती कि फूल। (२६)
फ़कत मेरी ख़ातिर तू हर काम कर,
हवन दान दे सब मेरे नाम पर।
तेरा खाना पीना हो मेरे लिए,
तेरा तप से जीना हो मेरे लिए। (२७)
कटेगे ये कर्मों के बन्धन तमाम,
न होगा बुरे या भले फल से काम।
जो तू पाक दिल हो के संन्यास पाये,
तो आज़ाद होकर मेरे पास आये। (२८)
मेरे वास्ते ख़ल्क यकसाँ है सब,
न इस से मुहब्बत न उस से ग़ज़ब।
जो पूजें मुझी को बा-सिदक-ओ यकीं,
मैं उन में हूँ और वो हैं मुझ में मकीं। (२९)
कोई आदमी गरचि बदकार है,
मगर मेरा दिल से परस्तार है।
उसे भी समझ ले कि साधु है वो,
इरादे में नेकी के यक्सू है जो। (३०)
वो धर्मात्मा जल्द हो जायेगा,
करार-ओ सकूँ दायमी पायेगा।
समझ ले मेरा भक्त कुन्ती के लाल,
न होगा फ़नाह और न पाये ज़वाल। (३१)
बशर पाप के पेट से हो कोई,
वो हो शूद्र या वैश्य या स्त्री।
मुझे आसरा जब बनायेगा वो,
तो आला मनाज़ल पे जायेगा वो। (३२)
मुक६स ब्रह्मण का रुतबा न पूछ,
ऋषिराज भक्तों का दरजा न पूछ।
तुझे दुःख की दुनिया-ए फ़ानी मिली,
तू कर सच्चे दिल से परस्तिश मेरी। (३३)
जमा ध्यान मुझ में हो मुझ पर फ़िदा,
तू कर यज्ञ तू मेरे लिए सर झुका।
अगर योग में दिल लगायेगा तू,
मैं मक़्सूद हूँ मुझ को पायेगा तू। (३४)
श्रीकृष्णार्जुनसंवाद राजविध्य्राजगुह्ययोगो नाम समाप्त
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